शनिवार, 5 नवंबर 2016

वापिस अपना भिक्षापात्र लेने जाने लगा

वापिस अपना भिक्षापात्र लेने जाने लगा
एक सूफी फकीर के पास एक खोजी आया। लेकिन खोजी देखकर दंग हुआ कि सूफी फकीर तो बड़ी शान से रहता था। उसने तो सुना था कि फकीरों को तो दीनता और दरिद्रता में रहना चाहिए। फकीर का अर्थ ही होता है कि जो गरीब है। यह कैसा फकीर। सोने का सिंहासन था उस फकीर का। राजमहल था उसका आश्रम। सब तरह की सुख-सविधाएं थीं। हीरे-जवाहरात बरसे पड़ते थे। सम्राट उसके शिष्य थे। उस फकीर से बड़ी बेचैनी होने लगी। यह तो बिल्कुल उलटा ही हो रहा है।
     लेकिन उस सूफी ने कहा कि अब आ ही गए हो,माना कि तुम्हारा मन राज़ी नहीं हो रहा है, कुछ देर तो मेहमान रहो,फिर जाना है तो चले जाना।थोड़ा और करीब से देखो।देखा करीब से,लेकिन कुछ दिखाई नहीं पड़ा कि इसमें योग कहां है?भोग तो खूब चल रहा था,योग कहां हैं,वह दिखाई नहीं पड़ता था। फिर उसे यह भी डर लगा कि अगर यहां ज्यादा देर रुका तो यहीं गति मेरी हो जाएगी।क्योंकि उसे भी धीरे-धीरे रसआने लगा। अच्छा भोजन मिला।अभी तो रूखा-सूखा खाता था।अच्छा भोजन मिला,स्वाद लगा। अच्छे बिस्तर पर सोने को मिला, तो डर लगने लगा कि अब वृक्षों के नीचे सो सकूँगा या नहीं,नींद आएगी भी कि नहीं? उस सूफी ने दो आदमी लगा रखे थे जो रोज़ सुबह उसका हाथ-पैर दाबते, मालिश करते। उसने कहा,यह मसीबत हुई जा रही है अब बिना मालिश के चैन न पड़ेगी। कौन मेरी मालिश करेगा?वह घबड़ा गया। आठ-पंद्रह दिन बाद उसने कहा, मुझे आज्ञा दें, मैं जाना चाहता हूँं। सूफी ने कहा, घबड़ा गए। डर गए।कला नहीं आती?कहां जाना चाहते हो?उसने कहा मैं तो जंगल में जा रहा हूँ।उस सूफी ने कहा,तो मैं भी चलता हूँ। खोजी तो मान नहीं सका कि यह सूफी कैसे जाएगा। इतना बड़ा महल, इतनी व्यवस्था सब छोड़कर। मगर वह चल पड़ा उसके साथ। जब कुछ मील दोनों निकल गए, तब उस खोजी को याद आया कि मैं अपना भिक्षापात्र आपके महल में भूल आया,तो मैं जाकर उसे वापिस ले आऊँ? तो उसे सूफी ने कहा,अपने साथ न चलेगा। मैं अपना पूरा महल छोड़ आया, तू भिक्षापात्र भी नहीं छोड़ सकता। फिर नमस्कार! फिर हमारे रास्ते अलग हो गए। फिर हमारी दोस्ती न चलेगी।
     वह सूफी फकीर उसे यह स्मरण दिला रहा था कि सवाल क्या पकड़ा है यह नहीं है,सवाल तो पकड़ने का है।लंगोटी कोई पकड़ सकता है, भिक्षापात्र कोई पकड़ सकता है, कोई महल ही थोड़े ही चाहिए बंधने के लिए। कुछ भी हो तो बँध सकता है। अगर कला न आती हो। और कला आती हो तो फिर महल में भी रहकर भी कोई आवश्यक नहीं है कि बँधे। फिर जल में कमलवत हो सकता है।

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