गुरुवार, 21 जनवरी 2016

तार न अधिक ढीले हों न कसे


     बुद्ध के पास एक राजकुमार संन्यस्त हुआ। उसका नाम था श्रोण। वह बहुत भोगीआदमी था। भोग में ज़िन्दगी बिताई। फिर त्यागी हो गया, फिर संन्यस्त हो गया। और जब भोगी त्यागी होता है तो अति पर चला जाता है।वह भी चला गया।अगर भिक्षु ठीक रास्ते पर चलते,तो वहआड़े टेढ़े रास्ते पर चलता।अगर भिक्षु जूता पहनते,तो वह काँटों में चलता। भिक्षु कपड़ा पहनते,तो वह नग्न रहता।भिक्षु एक बार खाना खाते,तो वह दो दिन में एक बार खाना खाता। सूख कर हड्डी हो गया,चमड़ी काली पड़ गई। बड़ा सुंदर युवक था,स्वर्ण जैसी उसकी काया थी। दूर-दूर तक उसके सौंदर्य की ख्याति थी।पहचानना मुश्किल हो गया। पैर में घाव पड़ गये।बुद्ध छः महीने बाद उसके द्वार पर गये।उसके झोंपड़े पर उन्होने जा कर कहा,श्रोण!एक बात पूछने आया हूँ।मैने सुना कि जब तू राजकुमार था तब तुझे सितार बजाने का बड़ा शौक था,बड़ा प्रेम था। मैं तुझसे यह पूछनेआया हूँ कि सितार के तारअगर बहुत ढीले हों तो संगीत पैदा होता है? श्रोण ने कहा, कैसे पैदा होगा? सितार के तार ढीले हों तो संगीत पैदा होगा ही नहीं। बुद्ध ने कहा,और अगर तार बहुत कसे हों तो संगीत पैदा होता है? श्रोण ने कहा, आप भी कैसी बात पूछते हैं।अगर बहुत कसे हों तो टूट ही जायेंगे। तो बुद्ध ने कहा, तू मुझे बता कैसी स्थिति में संगीत श्रेष्ठतम पैदा होगा?श्रोण ने कहा,एक ऐसी स्थिति है तारों की,जब न तो हम कह सकते हैं कि वे बहुत ढीले हैं और न कह सकते हैं कि बहुत कसे हैं,वही समस्थिति है। वहीं संगीत पैदा होता है।
     बुद्ध उठ खड़े हुए। उन्होने कहा, यही मैं तुझसे कहने आया था, कि जीवन भी एक वीणा की भांति है। तारों को न तो बहुत कस लेना, नहीं तो संगीत टूट जायेगा। न बहुत ढीला छोड़ देना,नहीं तो संगीत पैदा ही न होगा।और दोनों के मध्य एक स्थिति है,जहां न तो त्याग हैऔर न भोग, जहां न तो पक्ष है न विपक्ष, जहां न तो कुआँ है न खाई, जहां हम ठीक मध्य में हैं। वहां जीवन का परम-संगीत पैदा होता है।
     यह सूफी कथा भी उसी परमसंगीत के लिए है। न तो नियमों को तोड़कर उच्छृंखल हो जानाऔर न नियमों को मान कर गुलाम हो जाना। दोनों के मध्य नाज़ुक है रास्ता।इसलिए फकीरों ने कहा है,खड्ग की धार है। इतना बारीक है, जैसे तलवार की धार हो। मगर,अगर समझ हो, तो वह पतला सा रास्ता राजपथ हो जाता है। और जो उस रास्ते पर चलना सीखजाता है,उसके जीवन से सारे कष्ट गिर जाते हैंअति कष्ट लाती है, दुःख लाती है।दो अतियाँ हैं। एक नरक ले जाये,एक स्वर्ग,मोक्ष दोनों के मध्य में है। जो बहुत दिन स्वर्ग में रहेगा, उसको स्वाद बदलने के लिए नरक जाना पड़ेगा।और जो बहुत दिन तक नरक में रहेगा वह स्वर्ग पाने
की क्षमताअर्जित कर लेता है।वे दोनों एक दूसरे में बदलाहट करते रहते हैं।तुम्हें पता न हो, या पता हो,स्वर्ग और नरक के बीच बड़ा आवागमन चलता है।और वहां पासपोर्ट की भी कोई ज़रूरत नहीं।और दरवाज़े दूर-दूर नहीं हैं,आमने सामने हैं।इधर से लोग उधर जाते हैं,उधर से लोगइधर आते हैं। कोई रुकावट नहीं है। जब ऊब जाती है तबीयत,तो लोग स्वाद लेने उधर चले जाते हैं। तुम्हें पता है,दुःख से भी तुम ऊब जाते हो,सुख से भी तुम ऊब जाते हो। मिठाई खाते हो उससे ऊब जाते हो,नमकीन से थोड़ा स्वाद बदलते हो।नमकीन खाते हो उससे ऊब जाते हो,मीठे सेथोड़ा स्वाद बदलते हो।आराम से ऊब जाते हो श्रम करते हो,श्रम से ऊब जाते हो विश्राम करते हो। स्वर्गऔर नरक के बीच यात्रा चलती रहती है।दोनों के मध्य में है मोक्ष।

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