बुधवार, 10 अगस्त 2016

विद्वत्ता नहीं हृदय का प्रेम आवश्यक है


एक बार महाप्रभु चैतन्य भ्रमण करते हुए जब एक नगर में पहुचे, तो वहाँ के कुछ विद्वानों ने एक ब्राह्मण की शिकायत करते हुए कहा – “वह अपने घर के बाहर बैठकर नित्यप्रति गीता का पाठ बड़े ही ऊँचे स्वर में करता है। किन्तु वह चूँकि संस्कृत पढ़ा हुआ नहीं है इसलिए उसका पाठ बहुत ही अशुद्ध होता है। हम सबने उसे कई बार समझाया और ऊँचे स्वर में गीता का पाठ करने से मना किया, परन्तु वह किसी की सुनता ही नहीं। आप उसे समझाइये। हो सकता है कि आपके कहने से वह रुक जाए।” महाप्रभु चैतन्य ने उनकी बात मान ली और दूसरे दिन उन विद्वानों को साथ लेकर उसके घर पहुचे। घर क्या था? एक छोटा-सा कच्चा मकान था, जिसके बाहर एक चबूतरा था। चबूतरे के बीचो बीच एक पीपल का वृक्ष था। ब्राह्मण उस वृक्ष के नीचे बैठकर ऊँचे स्वर में गीता का पाठ कर रहा था। उसके नेत्रो से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी। महाप्रभु उसकी ऐसी अवस्था देखकर चकित रह गये और प्रेम विभोर होकर मौन खड़े, उसे पाठ करते देखते रहे। जब वह ब्राह्मण पाठ कर चुका, तो स्वाभाविक ही उसकी दृष्टि चैतन्य महाप्रभु तथा अन्य लोगो पर पड़ी। वह तुरंत अंदर से चटाई निकाल लाया, सबको आदर- सम्मान के साथ बिठाया, फिर हाथ जोड़ कर बोला- मेरे अहोभाग्य है जो आप सबने मुझ जैसे गरीब की कुटिया पर कृपा की। कहिये, क्या आज्ञा है? महाप्रभु चैतन्य ने बड़ी ही मधुर वाणी में कहा – “इन विद्वान ब्राह्मणों का कहना है कि आप गीता का बहुत ही अशुद्ध पाठ करते है क्योंकि आपको संस्कृत भाषा का सही ज्ञान नहीं है। अभी हमने स्वंय भी आपको गीता का पाठ करते देखा। शब्दों का उच्चारण आपका वास्तव में ही बहुत अशुद्ध है। आप क्या सोचकर गीता का पाठ करते है और पाठ करते समय आप क्या भाव रखते है?” ब्राह्मण ने उत्तर दिया- “भाषा- वाषा की बात मैं जानता नहीं, क्योंकि मैं कुछ विशेष पढ़ा लिखा नहीं हूँ। मुझे तो बस इतना पता है कि गीता में भगवान श्री कृष्ण तथा उनके प्रिय भक्त का संवाद है। गीता पढ़ते समय मुझे ऐसा अनुभव होता है कि मेरे सामने रथ में साक्षात् भगवान श्री कृष्ण तथा भक्त अर्जुन बैठे है और भगवान अर्जुन के प्रति वचन फरमा रहे है। उनके साक्षात् दर्शन कर मेरा हृदय प्रेम – विभोर हो जाता है और मैं संसार को पूर्णतया भूल जाता हूँ।” यह सुनते ही महाप्रभु चैतन्य एकदम उठे और उसे सीने से लगाते हुए कहा- “कौन कहता है कि तुम अशुद्ध पाठ करते हो? तुम्हारे जैसा गीता का पाठ करने वाला हमने आज तक नहीं देखा। सच पूछो तो गीता का वास्तविक पाठ तुम्ही ने समझा है। माखन तुम खाते हो और छाछ ये ब्राह्मण पाते है, जो अपने को विद्वान समझते है। विद्वान वास्तव में ये सब नहीं तुम हो, क्योंकि जिनके हृदय में प्रभु प्रेम का निवास है। वही सच्चा विद्वान अथवा पंडित है। उदाहरण के तौर पर शबरी, गोपियाँ ये सब ज्यादा पढ़ी लिखी विद्वान नहीं थी लेकिन इनके मन में भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति थी।”

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