शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

हीरे परखने में ही जीवन गँवाया


     एक राजा के राज्य में एक मन्त्री बड़ा भक्त था। राजा को हीरा-परखने की विद्या सीखने की अभिरुचि हुई। उसने बड़े बड़े कुशल मणिकारों (जोहरी) से विद्या सीखना आरम्भ किया। उस राजा के राज्य का विधान था कि जो भी राजा दिवंगत हो जाय उस के मुकट आदि को संग्रहालय में जमा कर दिया जाता था। उनमें हीरे-जवाहरात तो जड़े हुए होते ही है। राजा जब हीरों का कुशल परीक्षक बन गया तो उसने अपने संग्रहालय में रखे हुए दादा-परदादों में मुकुटों के जो हीरे जवाहरात लगे हुए थे उन की परीक्षा करने लगा। उसने और सब ताजों की परख कर ली किन्तु सातवीं पीढ़ी के सम्राट का जो मुकुट था उसमें एक हीरा ऐसा लगा हुआ था जिसका मुल्य वह अपनी मति से नआँक सका। अपने शिक्षकों को बुलवा कर उनसे उस हीरे का दाम मालूम किया तो वे भी सन्तोषदायक उत्तर न दे सके। निदान उसने समाचार पत्रों में लेख दिया और देश-देशान्तरों में यह बात फैल गई कि हमारे पास एक हीरा है जिसकी परीक्षा हमारे देश के मणिकार नहीं कर सके यदि किसी देश में ऐसा जौहरी हो जो उसका सही दाम बतावे तो उसे हम बहुत बड़ा पारितोषिक देंगे यह समाचार पढ़कर एक वृद्ध मणिकार जिसकी आयु 70-75 वर्ष की होगी उस राजा के देश में आया। राजा ने उसे वह हीरा दिखाया।उस जौहरी ने उस हीरे की पूर्ण परीक्षा कर के और उचित दाम बताकर राजा को सन्तुष्ट कर दिया।राजा गद्गद हो गयाऔर उसने अपने भक्त मन्त्री को बुलवायाऔर कहा कि इसे अपनी इच्छानुसार पारितोषिक दे दो, हम तुम्हारा हाथ नही रोकेंगे।मन्त्री ने कहा कि यदि मुझसे पूछते हो तो मैं समझता हूँ कि इसे इनाम में एक सौ जूते लगवाये जायें।राजा ने चकित होकर मन्त्री से पूछा ऐसा क्यों?मन्त्री ने उत्तर दिया कि इसने बुद्धि जैसी सुर्दुलभ वस्तु को पत्थरों के परखने में ही नष्ट कर दिया है। यदि यह अपनी बुद्धि को प्रभु के प्रेम में डुबो देता तो प्रभु रूप हो जाता। परन्तु उसके बदले इसने अपनी सारी आयु पत्थरों के परखने में गँवा दी। इसलिये में इसे दण्ड पाने का अधिकारी समझता हूँ।
     इसी प्रकार जिस ने अपनी सकल बुद्धिमता शरीर और शारीरिक सम्बन्ध जो अस्थिर और नश्वर हैं, एक दिन विनष्ट हो जाने वाले हैं उन में ही खो दी तब उसने धूलि फाँकने के सिवा क्या संचित किया। उस जैसा अल्पमति और नादान और कौन हो सकता है। जिसने इतना घाटे वाला काम किया किन्तु इस रहस्य को हर एक नहीं जान सकता सन्त सतगुरु की शरण में जाने से ही इन भेदों का ज्ञान होता है। तब ही जीवन की सफलता हाथ में आ सकती  है।

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