शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

नवाब के साथ नमाज़ पढ़ना


     जब श्रीगुरुनानकदेव जी ने नवाब दौलतखाँ के मोदीखाना में काम करना छोड़ दिया, तब नवाब के बुलाने पर पहली बार तो वे उसके पास न गए,परन्तु जब उसने दोबारा बुलवाया तो फिर वे चले गए। नवाब ने जब उनसे पहली दफा बुलवाने पर न आने का कारण पूछा तो श्री गुरु नानकदेव जी महाराज ने फरमाया-अब हमआपके नौकर नहीं, परमेश्वर के चाकर हैं।अब हम फकीर हो गए हैं। यह सुनकर नवाब ने कहा-यदि आप फकीर हो गए हैं, तो फिर चलिए, हमारे साथ चलकर मस्जिद में नमाज़ पढ़िये। आज जुमा(शुक्रवार) है और हम सब नमाज़ पढ़ने जा रहे हैं।श्री गुरुनानकदेव जी उसकी बात सुनकर मुस्करा दिये और फरमाया-चलिये!हम तैयार हैं।
     मस्जिद में पहुँचकर नवाब दौलत खाँ तथा अन्य लोगों ने नमाज़ अदा की, परन्तु श्रीगुरुनानकदेव जी चुपचाप खड़े रहे। नमाज़ पढ़ चुकने पर नवाब ने श्रीगुरुनानकदेव जी से कहा-आप तो हमारे साथ नमाज़ पढ़ने आए थे,फिर आप खड़े क्यों रहे? आपने हमारे साथ नमाज़ क्यों न अदा की। यदि आपने ऐसा ही करना था,तो फिर यहाँ आए ही क्यों?श्री गुरुनानकदेव जी ने फरमाया-जब आप यहाँ मौजूद ही नहीं थे,तो फिर हम किसके साथ नमाज़ अदा करते?नवाब दौलत खाँ ने क्रोध में भरकर कहा-आप फकीर होकर झूठ क्यों बोलते हैं?मैं तो नमाज़ में शरीक था। श्री गुरु नानकदेव जी ने फरमाया-नवाब सहिब!आपका शरीर तो यहाँ अवश्य थाऔर आपकी शरीर-इन्द्रियाँ भी नमाज़ अदा करने में व्यस्त थे, परन्तु आपका मन तो नमाज़ पढ़ते समय घोड़े खरीदने के लिए कंधार गया हुआ था, फिर हम किसके साथ नमाज़ पढ़ते? और निम्नलिखित बाणी का उच्चारण कियाः
          मत्था ठोके ज़मीन पर, मन उड्डे असमान।
          घोड़े कंधार खरीद करे, दौलत खाँ पठान।।
यह सुनकर नवाब बड़ा लज्जित हुआ। तब काज़ी ने कहा-नवाब साहिब के विषय में झूठ क्यों बोलते हो? श्री गुरु नानकदेव जी ने फरमाया-हम सच बोल रहे हैं या झूठ,इस बारे में नवाब साहिब से ही क्यों नहीं पूछ लेते? तब नवाब ने कहा-काज़ी जी!नानक सच कहते हैं, वास्तविकता यही है कि जब मैं सजदे में खड़ा था, तब मेरा मन कंधार में भटक रहा था और वहाँ घोड़े खरीद रहा था। काज़ी ने कहा-नवाब साहिब! मान लिया कि आप मन से उस समय कंधार गए हुये थे, परन्तु हम तो कहीं नहीं गए थे, हमारे साथ नानक नमाज़ पढ़ लेते?काज़ी की बात सुनकर श्री गुरुनानकदेव जी ने हँसते हुए फरमाया-आप भी शारीरिक रूप से अवश्य यहाँ उपस्थित थे,परन्तु आपका मन तो आपके घर पर घूम रहा था,वह यहाँ पर कहाँ था? क्योंकि आपको तो उस समय यह चिन्ता सता रही थी कि बछेड़ा(घोड़े का बच्चा) जो आज ही पैदा हुआ है, वह कहीं आँगन में खुदे हुए गड्ढे में न गिर जाए। बात सच्ची थी,इसलिए काज़ी निरुत्तर हो गया।वह भला इस बात का क्या उत्तर देता?अब ऐसी नमाज़ अदा करने से कोई पूरा-पूरा लाभ उठा सकता है?कदापि नहीं। जब मन ही कहीं और भटक रहा है तो फिर पूरा लाभ कैसे मिल सकता है?पूरा पूरा लाभ तभी मिल सकता है जबकि मन भी एकाग्र होकर इन साधनों में जुट जाए ऐसा होने पर ही मनुष्य द्वारा की हुई पूजा,उपासना,सेवाआदि सच्ची मानी जायेगीऔर तभी उसे पूरा-पूरा लाभ भी मिलेगा।

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